पहाड़ों में कभी आपदा, कभी जंगलों की आग से पर्यटन व्यवसायियों को भारी नुकसान हो रहा है. पिछले दो सालों से कोरोना के कारण पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप था. अब तेजी से बढ़ रहा था तो वन विभाग की लापरवाही से पर्यटक डर रहे हैं. अल्मोड़ा. उत्तराखंड के पहाड़ में चारों तरफ जंगलों की आग लगने से धुंध ही धुंध है, जिससे पहाड़ में आकर पर्यटकों को हिमालय के दर्शन नहीं हो पा रहे है. पिछले 2 साल के कोरोना काल के बाद पर्यटकों का रुख पहाड़ की तरफ बढ़ा है. अगर जल्दी ही आग पर काबू नहीं पाया गया तो पर्यटकों की संख्या में कमी हो सकती है. गर्मियों में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहाड़ों का रुख करते हैं, जिससे पर्यटन से जुडें लोगों को रोजगार मिलता है. लेकिन इस बार अप्रैल माह में ही सैकड़ों किलोमीटर जंगल जलकर स्वाहा हो गए हैं. पिछले सप्ताह 4 दिनों की छुट्टी से पहाड़ों में होटल पूरी तरह से पैंक हो गए थे, लेकिन जंगलों की आग होटलों तक पहुंचने का खतरा बढ़ रहा है, जिससे पर्यटक भी चितिंत हैं. होटल व्यवसायी राजेश बिष्ट का कहना है कि जंगलों की आग को बुझाने के लिए वन विभाग को अपने प्रयास तेज करने चाहिए. जंगलों की आग एक आपदा है, इसके लिए राज्य की सरकार और प्रशासन भी मदद करें, जिससे जंगलों को बचाया जा सकता है. पर्यटकों को भी राज्य के जंगलों की आग की सूचना जा रही है, जिससे लोग पहाड़ों पर कम आना चाह रहे हैं. वहीं पर्यटक मीनाक्षी का कहना है कि वह अल्मोड़ा कौसानी से हिमालय के दर्शन के लिए पहाड़ में अपने दोस्तों के साथ दिल्ली से घूमने आई थी, लेकिन चारों तरफ धुध से हिमालय के दर्शन नहीं हुए, जिससे निराशा हाथ लगी है. उधर वन विभाग के डीएफओ दीप चन्द्र पंत का कहना है कि लगातार आग बुझाने में लगे हैं, इतना ही नहीं जनप्रतिनिधियों के सहयोग की बात ही विभाग के अधिकारी कर रहे हैं. हाड़ों में कभी आपदा, कभी जंगलों की आग से पर्यटन व्यवसायियों को भारी नुकसान हो रहा है. सरकारों को पर ऐसी नीति बनानी चाहिए कि पहाड़ों में अधिक से अधिक पर्यटक आ सके. पिछले दो सालों से कोरोना के कारण पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप था. अब तेजी से बढ़ रहा था तो वन विभाग की लापरवाही से पर्यटक डर रहे हैं. अब तो बस इंद्र देव के मेहरबान होने की ही उम्मीद है, तभी जंगलों की आग पूरी तरह से बुझ पाएगी.
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