Thursday, 11 November 2021

*गांधी जी पर कविता* गांधी जी अपनी जिद में पूरे भारत को ले डूबे।तब जाकर के सफल हुए जालिम जिन्ना के मंसूबे।©®

*गांधी जी पर कविता*
  गांधी जी अपनी जिद में पूरे भारत को ले डूबे।
तब जाकर के सफल हुए जालिम जिन्ना के मंसूबे।
©®
जिस धरती ने विश्व गुरु बन वसुधा का उद्धार किया।
कालांतर में कुछ यवनों ने उस पर फिर अधिकार किया।
ब्रह्मसूत्र फेंके जाते थे लाल-लाल अंगारों पर।
जिसने तिलक लगाया उसकी गर्दन थी तलवारों पर।
 यवनों से मुक्ति पाई तो अंग्रेजों पर अटक गए।
जैसे आसमान से टपके और खजूर पर लटक गए।
कारतूस में अंग्रेजो के द्वारा चरबी भरने पर।
 भारत का सोया पुरुष जागा गौ माता के मरने पर।
 महा समर का बिगुल बजा मंगल पांडे की फांसी से।
 रणचंडी बनकर निकली लक्ष्मीबाई भी झांसी से।
 मातृभूमि पर पुनः गुलामी का जब संकट गहराया।
 तब भारत मां का बेटा अफ्रीका से वापस आया।
 सत्य अहिंसा का व्रत धारी तीव्र वेग की आंधी था।
 आजादी का सपना पाले वह व्यक्ति महात्मा गांधी था। गांधीजी तो गोरों से आजादी का दम भरते थे।
 इसीलिए शेखर सुभाष सभी उनका आदर करते थे।
माना गांधी ने कष्ट सहे है अपनी पूरी निष्ठा से।
और भारत प्रख्यात हुआ था उनकी अमर प्रतिष्ठा से।
(जब 2 गुण मिलते हैं तो क्या होता है)
सत्य अहिंसा कभी-कभी अपनों पर ही ठन जाता है।
 घी और शहद अमृत है पर मिलकर के विष बन जाता है।
 गांधी को विश्वास नहीं था कभी क्रांत की पीढ़ी पर।
 धीरे-धीरे बापू चल गए अंधकार की सीढ़ी पर।
 तुष्टिकरण के खूनी खंजर घोप रहे थे गांधी जी।
 अपने सारे निर्णय हम पर थोप रहे थे गांधीजी।
 महा क्रांति का हर नायक उनके लिए खिलौना था।
 उनके हट के आगे जंबू दीप हमारा बोना था।
निरपेक्ष धर्म के प्याले में विष पीना हमको सिखा दिया।
 दो चांटे खाकर बेशर्मी से जीना हमको सिखा दिया।
 इसीलिए भारत अखंड भारत अखंड का दौर गया।
 भारत से पंजाब सिंधु रावलपिंडी लाहौर गया।
 तब जाकर के सफल हुए जालिम जिन्ना के मंसूबे।
 गांधी जी अपनी जिद में पूरे भारत को ले डूबे।
 भारत के इतिहासकार थे चाटुकार दरबारों में।
 अपना सब कुछ दे चुके थे नेहरू के परिवारों में।
 जब भारत को दोबारा टुकड़े टुकड़े करने की तैयारी थी। तब नाथू ने गांधी के सीने में गोली मारी थी।
 यह स्वराज परिणाम नहीं है गांधी के आंदोलन का।
यज्ञों का हवन बनाया शेखर ने पिस्टल गन का।
लाल लहू से अमर फसल तब जाकर लहराई है।
 सात लाख के प्राण गए तब यह आजादी आई है।
 (गांधी को प्रतीक)
 हिंदू अरमानों की जलती एक चिता के गांधीजी।
 कौरवों का साथ निभाने वाले भीष्म पिता थे गांधी जी।
 आप चाहते तो अहिवरन को झुकाव सकते थे।
 भगत सिंह की फांसी पल भर में रुकवा सकते थे।
इस माटी के तीन लाडले लटक गए जब फन्दों से।
भारत माता हार गई अपने घर के जयचन्दों से।
मंदिर में पढ़कर कुरान विश्व विजेता बने रहे।
 ऐसा करके मुस्लिम जनमानस के नेता बने रहे।
 अरे एक नवल गौरव करने की हिम्मत तो करते बापू।
 मस्जिद में गीता पढ़ने की हिम्मत तो करते बाबू।
 गांधी जी का प्रेम अमर था केवल चांद तारों से।
 उसका फल हम सब ने पाया भारत के बंटवारे से।
 गांधी ने नेहरू को दे दी चाबी शासन सत्ता की।
 लेकिन पीड़ा देख ना पाए श्रीनगर कोलकाता की।
रेलों में हिंदू काटकाट भेज रहे थे पाकिस्तानी।
 टोपी के लिए दुखी थे पर चोटी की एक नहीं मानी।
सत्य अहिंसा का नाटक बस केवल हिंदू पर था।
 उस दिन नाथू के महा क्रोध का पानी सर के ऊपर था।
 गया प्रार्थना सभा में गांधी को करने अंतिम प्रणाम।
 ऐसी गोली मारी उनको याद आ गए जय श्री राम।
जिनकी भूलों के कारण भारत के हिंदू छले गए।
 बे बापू हे राम बोलकर देवलोक को चले गए।
नाथू ने अपनी मातृभूमि को सब कुछ अर्पण कर डाला।
 गांधी का वध करके अपना आत्मसमर्पण कर डाला।
 आजादी के बंद रहस्य का उद्यापन करना है।
नाथू के इस अमर कृत का अब सत्यापन करना है।
मुक हिंसा के कारण भारत का आंचल फट जाता।
 गांधीजी जीवित होते तो देश ददोबारा बट जाता।
 (कुछ विचार अपने) 
अरे अहिंसा के कारण सेना को विश चाखवा दें क्या।
क्या सीमा से शस्त्र हटाकर चरखे रखवा दें क्या।
थक गए हैं हम प्रखर सत्य की अर्थी को ढोते- ढोते।
 बड़ा अच्छा होता जो नेताजी राष्ट्रपिता होते।
 धर्म परायणता का सिन्धु चरम पर आएगा।
जन गण मन से अधिक प्रेम जब वंदे-मातरम पर आएगा।
 उसी दिवस यह दुनिया हमको संप्रदाय बतलाती है।
 राष्ट्रभक्त की पराकाष्ठा देशद्रोह हो जाती है।
 नाथू को फांसी लटका कर गांधीजी को न्याय मिला।
और मेरी भारत मां को बंटवारे का अध्याय मिला।
 लेकिन जब जब कोई भीष्म गौरव का साथ निभाएगा।
तब तब कोई अर्जुन रण ने उस पर तीर चलाएगा।
 जिन्ना ने रेलों में भेजा था अंश हमारी बोटी का।
नाथू ने सम्मान बचाया सबकी चंदन चोटी का।
अगर गोडसे की गोली उतरी ना होती सीने में।
 हर हिंदू फिर पढ़ता नमाज मक्का और मदीने में।
 भारत की बिखरी भूमि अब तलक समाहित नहीं हुई।
 नाथू की रखी अस्थियां अब तक प्रभावित नहीं हुई।
 उनकी स्थिति प्रतीक्षा करती सिंधु के पावन जल की।
उसके लिए जरूरत हमको श्रीराम के संभल की।
 इससे पहले अस्त कलश को सिंधु की लहरें सींचे।
 पूरा पाके समाहित कर दो भगवा झंडे के नीचे।
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