मेरी नई कविता को *_नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊंगी_* आप सभी लोग बेइंतहा प्यार दे और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें
*उत्कर्ष शुक्ला*
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।
प्यार किया है तुम्हीं से केवल तुझमें ही मिल जाऊँगी।
मीठेपन को लिये हूँ बहती मन मेरा आनन्दित है,
तेरी गरजन सुनकर लगता तू कितना आह्लादित है,
मिलन हमारा जिस दिन होगा उत्सव नया मनाऊँगी।
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।।
ऊँचे पर्वत से गिरकर भी तट तट जा व्यवहार किया,
तुम्हीं से मिलने की खातिर ही दुर्गम पथ भी पार किया,
मिलूँगीं जब भी तुमसे आकर अपनी व्यथा सुनाऊँगीं।
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।।
दिनकर का प्रतिबिम्ब यहाँ तो मुझे सुहागिन कर जाता,
मेरा आँचल भी खुशियों से प्रतिदिन आकर भर जाता,
ली शपथ है मैंने सबका मन पावन कर जाऊँगी।
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।।
लिये मिलन की आस चली हूँ मन मेरा उत्कण्ठित है,
सुनकर रूप विशाल तेरा मन हो जाता आशंकित है,
फिर भी तेरे हृदय पे अपनी प्रेम-कथा लिख जाऊँगी।
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।।
जन जन का मैं प्रेम लिये जब तट पर तेरे आऊँगी,
अमर-प्रेम की धारा से मैं अमर तुम्हें कर जाऊँगी,
दिया वचन जो तुमको मैंने आकर वहीं निभाऊँगी।
नदिया बात कहे सागर से प्रेम अमर कर जाऊँगी।।
*----उत्कर्ष शुक्ला----*
*-----मोहम्मदी-----*
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