*जयंत के प्रभारी बदले लेकिन अवैध कारोबार जस का तस*
*एस.के. खान - मिनर्वा न्यूज़*
*चोरियों लगातार जारी, प्रभारी की निष्क्रियता*
*जयंत चौकी बना कमाई का जरिया, घूम फिर कर आना चाहते हैं प्रभारी जयन्त*
सिंगरौली।। सिंगरौली जिला सीकेडी के नाम पर होता जा रहा है वही आपको बता दें कि जयंत चौकी क्षेत्र में कोयला कबाड़ डीजल का कारोबार रुकने का नाम नहीं ले रहा है आए दिन लगातार चोरियां हो रही है चौकी प्रभारी बदल गए लेकिन अवैध कारोबार में कोई रुकावट नहीं आई जयंत चौकी पुलिस कर्मियों की कमाई का अड्डा हैं। ज्ञात हो कि रामायण मिश्रा जयंत चौकी में रह चुके हैं लेकिन उनका ट्रांसफर सिंगरौली जिले से बाहर हो गया था सिंगरौली जिले में पुनः ट्रांसफर होते ही जयन्त चौकी में काबिज हो गए। वही आपको बता दें कि सिंगरौली में एक बार आ जाने के बाद बार-बार अधिकारी कर्मचारी सिंगरौली में ही आना चाहते हैं वही आपको बता दें कि जयंत चौकी क्षेत्र में आए दिन चोरी की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं कोयला कबाड़ डीजल के अवैध कारोबार पर कोई रुकावट नहीं है गोपनीय सूत्रों ने बताया कि हर महीने चौकी में गांधी बाबा की हंसती हुई लाल पीली नोटे पहुंचा दिया जाता है जिसके बात सारा कारोबार चलता है पैसा देने वाला कोई और नहीं बल्कि अवैध कारोबार करने वाले व्यक्ति के यहां कार्य करता है सूत्र ने नाम न छापने एवं दिए जाने वाले रकम की संख्या न छापने की शर्त पर मामला बताया कि जयंत क्षेत्र में कोयला कबाड़ डीजल का कारोबार अवैध चल रहा जिसके बदले में जयंत चौकी को महीना नजरियाना दिया जाता है।
*नहीं मिलेगा पैसा तो हो जाएगी कार्यवाही*
गोपनीय सूत्र ने बताया कि जब तक पैसा दिया जाएगा तब तक अवैध कारोबार चलेंगे नहीं तो कारोबार को बंद करा दिया जाएगा या फिर कार्यवाही हो जाएगी। जयंत चौकी क्षेत्र में चल रहे कोयला कबाड़ डीजल सहित बढ़ रही चोरियों पर अंकुश लगने का नाम नहीं ले रहा है लेकिन पुलिस की निष्क्रियता और चौकी प्रभारी की मासूमियत जयंत चौकी क्षेत्र की जनता के लिए मुसीबत बन गया है।
*क्या सिंगरौली में यैसे ही मिलता है चौकी थाना?*
सिंगरौली जिले में आते ही अधिकारी कर्मचारियों को राजनीतिक आकाओं के दरवाजे पर जाकर घुटने टेकन पड़ता है और दक्षिणा भी देना होता है इसके बाद मनचाहा क्षेत्र का पदभार मिल जाता है जिसकी वजह से क्षेत्र में अवैध गतिविधियां संचालित हो जाती हैं। जिले में दर्जनों दरोगा हैं लेकिन उन्हें चौकिया नहीं मिलती लेकिन उनको जरूर मिल जाती हैं जो राजनीतिक आकाओं के दरवाजे पर जाकर घुटने टेक देते हैं।
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