Friday 24 September 2021

*मुस्लिमों की जन्मदर में बड़ी गिरावट, जानें क्या कहते है आंकड़े**एस.के. खान मिनर्वा न्यूज़*

*मुस्लिमों की जन्मदर में बड़ी गिरावट, जानें क्या कहते है आंकड़े*

*एस.के. खान मिनर्वा न्यूज़*
भारत में हिंदू और मुस्लिमों की आबादी की ग्रोथ रेट में 1951 से लेकर अब तक कोई बहुत ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिला है। हालांकि बीते कुछ दशकों में देश के सभी प्रमुख धर्मों के लोगों की जन्मदर में गिरावट देखने को मिली है। खासतौर पर मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर में भी तेज गिरावट आई है। अमेरिकी नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन प्यू रिसर्च सेंटर के शोध में यह बात सामने आई है। सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिंदू और मुस्लिमों के अलावा ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय के लोगों की जन्मदर में भी कमी देखने को मिल रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक 1992 से 2015 के दौरान भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर में तेज गिरावट आई है। 1992 में मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर 4.4 थी, जो 2015 में 2.6 पर ही आकर ठहर गई है। दूसरी तरफ हिंदुओं की वृद्धि दर घटते हुए 3.3 फीसदी से 2.1 पर आ गई है। इसके साथ ही अब मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच जनसंख्या वृद्धि दर का अंतर कम हो गया है।

अब हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर मुस्लिमों के मुकाबले 0.5 ही कम है, जिसमें कभी 1.1 का अंतर हुआ करता था। इस लिहाज से देखें तो मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर भले ही अन्य समुदायों के मुकाबले अब भी ज्यादा है, लेकिन उनकी ग्रोथ रेट में बड़ी गिरावट आई है।

रिपोर्ट से साफ है कि भारत के अलग-अलग समुदायों के बीच जनसंख्या वृद्धि दर का अंतर तेजी से कम हो रहा है। भारत की औसत जन्मदर फिलहाल 2.2 है, जो 1951 के मुकाबले काफी कम हो गई है। लेकिन मौजूदा विश्व की तुलना करें तो यह अब भी ज्यादा है। 2019-200 में हुए पांचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक असम में मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर में तेजी से कमी है। हालांकि अब भी यह दूसरे समुदायों के मुकाबले अधिक है। असम में मुस्लिमों की जन्मदर 2.4 है, जबकि हिंदुओं की दर 1.6 और ईसाइयों की 1.5 है।

बता दें कि भारत में मुस्लिमों की जन्मदर अधिक होने की बातें की जाती रही हैं। यह भी कहा जाता रहा है कि यदि यही दर रही तो भारत की कुल आबादी में मुस्लिमों का अनुपात आने वाले समय में ज्यादा हो जाएगा। प्यू रिसर्च सेंटर का कहना है कि इस तरह की बातें बेबुनियाद हैं और उनका कोई आधार नहीं दिखता। सेंटर ने कहा कि इस रिपोर्ट से भी साफ है कि अन्य समुदायों की तरह ही मुस्लिमों की जन्मदर में भी कमी देखने को मिल रही है।

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