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*अनामिका सिंह अविरल - कानपुर* *की बेहतरीन कविता*
प्रेम की ज्योति में जल गंगा सी पावन हो गई,
जोड़कर जन्मों का बंधन मै सुहागन हो गई।
प्रेम की ज्योति....…....
मांग में सिन्दूर तेरा सिर पे सज गई ओढ़नी,
साज और श्रृंगार तन पर लग रही मै मोहिनी।
सात जन्मों का ये बंधन बंध गया तेरे साथ जो,
मै बनी चरणों की दासी,प्रीत पावन हो गई।।
प्रेम की ज्योति........
प्रेम का एक दीप दोनों ने जलाया रात भर,
मन का एक संगीत
दोनों ने सुनाया रात भर।।
तेरी सांसों की तपिश में मै हवन फ़िर हो गई,
जो छुआ अंतास्त मन को,
मै सुहावन हो गई।।
प्रेम की ज्योति...........
दोनों के फ़िर बीच में दूरी रहीं न सांस की,
कुछ ख़बर मुझको रहीं न दूर की य पास की
भर लिया तूने अलिंगन, मुझको जिस छड़ प्रेम से,
तू बना बादल की बूंदे, मै भी सावन हो गई।।
प्रेम की ज्योति......…...
प्रीत का हुआ अंकुरण, मन की सुप्त शिराओं में,
मै तो थी पतझड के जैसी, फूल खिला दिए चाह में।
खो गई तुझमें फ़िर ऐसी सुध बुध अपनी भूल कर,
तूने हृदय से लगाया, मै लुभावन हो गई।।
प्रेम की ज्योति.......
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